शनिवार, 24 मई 2008

मेरी प्रांतसाहबी --9-- My days as Assistant Collector

मेरी प्रांतसाहबी -- My days as Assistant Collector --9
उन दिनों इमर्जन्सी चल रही थी और फॅमिली प्लानिंग कैम्पस्‌ पर काफी जोर था। हर कलेक्टर, प्रांतसाहब और तहसिलदार के लिये टार्गेट तय किया जाता था जो अन्ततः फिर पटवारी पर आता था। यह कोई ऐसा काम नही था जो पटवारी खसरा खतौने की कापियाँ देने से मना करके या वसूली का डर दिखाकर लोगों से करा ले। यहाँ लोक-प्रबोधन की काफी आवश्यकता थी। सो मैंने भी कई लेक्चर दिये हैं, ग्राम सभाओं में और कहाँ कहाँ। इसमें मैं देश की जनसंख्या से उत्पन्न समस्याएँ, गरीबी, कृषि जमीन की घटती पैदावार, अशिक्षा आदि बातों पर बल देती। साथ ही जहाँ कैम्प लगाया है वहाँ की सुविधाओं की जाँच, मेडिकल टीम से विचार विमर्श इत्यादि। खासकर महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों की नसबंदी की उपयोगिता लोगों के साथ-साथ प्रशासन के कर्मचारियों और अधिकारियों को समझाना। उन दिनों लेप्रोस्कोपी तकनीक नही थी। महिला शस्त्रक्रिया एक गंभीर शस्त्रक्रिया होती और महिला को पच्चीस तीस दिन अस्पताल में रखना पड़ता। सरकार उसे इन्सेन्टिव्ह के तौर पर एक सौ पचीस रूपये देती। इसलिए मैंने पिंपरी चिंचवड नगर पालिका से एक स्कीम बनाने को कहा जिसमें पुरूष नसबंदी होने पर उसे एक हजार रूपये का इन्सेन्टिव्ह दिया जाने लगा। सो हवेली प्रांत के जितने भी पुरूष नसबंदी के लिये राजी होते उन्हें हम पिंपरी ले आते। इस कारण इन दो वर्षों में पिंपरी में कई हजार पुरूष नसबंदी के ऑपरेशन हुए।

वह इमर्जन्सी का दौर था। पूरे देश में फॅमिली प्लानिंग ऑपरेशन्स पर जोर था। मेरे जो बॅचमेट अन्य राज्यों में थे, उनसे में सुनती कि वहाँ क्या क्या धांधलियाँ या जोर जबर्दस्ती हुई। ऐसा भी नही कि महाराष्ट्र में सब तरफ ऑल-वेल हो। ऐसे में एक सजग अधिकारी केवल इतना कर सकता है कि अपने इलाके में जहाँ तक संभव है धांधलियॉ, गबन या जुलुम न होने दे। थोड़ा प्रेशर बनाना जरूरी होता था जिसके लिये जिला परिषद के लोक नियुक्त सदस्य भी प्रचार सभाओं के माध्यम से काफी मददगार साबित हो रहे थे।

यह एक अलग डिबेट का विषय है कि क्या जनसंख्या नियंत्रण आवश्यक है, और यदि है तो क्या नसबंदी ऑपरेशन ही उसका एक मात्र तरीका है? या यह कि जनसंख्या नियंत्रण का उद्देश्य पूरा करने में नसबन्दी का योगदान कितने प्रतिशत है? लेकिन यह भी दुर्भाग्यपूण है कि १९८० के बाद दुबारा किसी सरकार या किसी पार्टी की हिम्मत नही हुई है इस विषय पर लोक बहस करवाने की।
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