इक्कीसवीं
सदी
की
औरत
नई
शताब्दी
और
सहस्त्राब्दी
की
दहलीज
पर
खडे
हम
कह
सकते
हैं
कि
बीसवीं
सदी
की
नारी
चेतना
और
इक्कीसवीं
सदी
की
नारी
चेतना
में
बहुत
अन्तर
होगा
!
बीसवीं
सदी
में
नारी
के
अधिकारों
की
बातें
हो
रही
थीं
और
अगला
पर्व
सक्षमता
का
होगा
!
इसकी
दिशा
कैसी
होनी
चाहिए
और
उसमें
हम
क्या
योगदान
दे
सकते
हैं,
यह
मनन
का
विषय
है
!
भारत
के
परिप्रेक्ष्य
में
कहा
जा
सकता
है
कि
बीसवीं
सदी
में
नारी
को
कई
अधिकार
मिले
!
उन्नीसवीं
सदी
में
बंगाल
से
सती-प्रथा
विदा
हुई
अर्थात्
जीने
का
हक
मिला
!
लेकिन
उसी
समय
भारत
की
आजाद
साँसों
को
बचाने
की
अन्तिम
लडाई
में
लक्ष्मीबाई
को
अंग्रेजों
से
मात
खानी
पडी
!
फिर
हमारी
अर्थव्यवस्था
के
छिन्न-भीन्न
होने
का
दौर
चला
!
हमारे
कारीगर,
हमारा
आयुर्वेद,
हमारा
व्यापार,
सब
धीरे-धीरे
ब्रिटिश
राज
में
सिकुड
रहे
थे,
लेकिन
इसके
साथ
ही
सार्वजनिक
शिक्षा
प्रणाली
खुल
रही
थी
!
इस
नई
शिक्षा
प्रणाली
का
उपयोग
प्राय:
हर
समाज-सुधारक
ने
किया
और
इस
तरह
बीसवीं
सदी
में
स्त्री
शिक्षा
का
दौर
चला
!
विधवा
विवाहों
को
मान्यता
मिली
!
बाल
विवाह
रूके
!
एक
तरह
से
कहा
जा
सकता
है
कि
नारी
को
दुख
की
जिन्दगी
को
सुख
में
बदलकर
जीने
का
और
शिक्षा
पाकर
अपने
रास्ते
आप
ढूँढने
का
अधिकार
मिल
गया
है
!
बीसवीं
सदी
में
भारत
को
नारी
चेतना
को
दो
अलग-अलग
कालखण्डों
के
सन्दर्भ
में
देखा
जाना
चाहीए
!
पहली
अर्धशती
गुलामी
में
और
दूसरी
स्वतंत्रता
के
माहौल
में
!
पहले
कालखंण्ड
की
तीन
महत्त्मपूर्ण
बातें
गिनाई
जा
सकती
हैं
!
बडे
पैमाने
पर
महिलाओं
की
शिक्षा
का
कार्यक्रम
चला
!
फिर
आर्यसमाज,
ब्रह्मसमाज
जैसी
संस्थाओं
के
कारण
सामाजिक
कार्यक्रमों
में
महिलाओं
की
सहभागिता
बढी
!
स्वतन्त्रता
की
लढाई
में
भी
महिलाएँ
क्रान्तिकारी
और
सत्याग्रही
दोनों
तरह
से
शरीक
हुईं
!
लेखन
क्षेत्र
में
भी
उनका
आगे
आना
आरम्भ
हुआ
!
इस
दौर
में
हम
पंडिता
रमाबाई,
दुर्गा
भाभी,
कस्तूरबा
गाँधी,
सरोजिनी
नायडू
जैसे
नाम
गिना
सकते
हैं
!
स्वतंत्रता
के
बाद
अगले
पचास
वर्षों
में
कई
क्षेत्रों
में
महिलाएँ
आगे
आई
!
प्रधानमन्त्री
का
पद
सँभालने
वाली
इन्दिरा
गाँधी
से
लेकर
ऐसे
कई
क्षेत्र
और
कई
नाम
गिनाए
जा
सकते
हैं
जहाँ
महिलाओं
को
व्यक्तिगत
रूप
से
अभूतपूर्व
सफलता
और
कर्त्तव्यपूर्ति
का
सन्तोष
मिला
है
!
लेकिन
इसके
बावजूद
यह
सच
है
कि
कई
क्षेत्रों
में
अब
भी
नारी
अनपहचानी
है
!
गणित,
भौतिक
विज्ञान
और
दर्शन
शास्त्र
जैसे
गहन
माने
जाने
वाले
विषयों
में
औरतों
की
दखल
को
हिकारत
से
देखा
जाता
है
!
युद्ध,
यु्द्धशास्त्र,
सेना
आदि
में
स्त्रियाँ
बहुत
कम
हैं
!
रणनीति,
रिजर्व
बैंक,
रॉ
या
आईबी
जैसी
गुप्तचर
एजेंसियों,
व्यापार
और
उद्योग
के
क्षेत्र,
बैंकिंग
और
यहाँ
तक
कि
शतरंज
के
खेल
में
भी
औरत
को
कम
दर्जे
का
माना
जाता
है
!
एक
समान
सूत्र
उन
सारे
क्षेत्रों
में
है
जहाँ
बीसवीं
सदी
की
महिला
अभी
तक
नहीं
पहुँच
पाई
है,
और
वह
यह
कि
जहाँ
हर
पल
सतर्कता
रखकर
रणनीति
और
व्यूहरचना
बदलकर
दिमागी
लडाई
लडने
की
बात
है,
वहाँ
नारी
आब
भी
अबला
समझी
जा
रही
है
!
केवल
राजनीतिक
नेतृत्व
का
क्षेत्र
अपवाद
है
जहाँ
पग-पग
पर
लडाई
लडते
हुए
काफी
हद
तक
यह
साबित
और
स्वीकृत
करा
लिया
कि
नारी
भी
राजनीति
के
क्षेत्र
में
पुरूषों
जितनी
ही
सक्षम
है
!
कुछ
ऐसे
प्रसंगों
का
उल्लेख
करना
उचित
होगा
जो
स्त्री
चेतना
को
आगे
ले
जाने
की
दिशा
या
रास्ता
दिखाते
हैं
!
जब
मेरी
नौकरी
की
पहली
पोस्टिंग
पुणे
में
थी
तो
एक
महिला
से
परिचय
हुआ
जो
पुणे
में
१९४०
के
पहले
से
दुपहिया
स्कूटर
चलाया
करती
थी
!
आज
भी
कई
ऐसे
बडे
शहर
हैं
--
गाँवों
की
बात
तो
छोड
ही
दीजिए
– जहाँ
कोई
महिला
स्कूटर
चलाने
लगे
तो
वह
एक
खबर
बन
जाती
है
!
लेकिन
पुणे
में
स्कूटर
चलाने
वाली
जनसंख्या
में
आज
आधे
से
ज्यादा
महिलाएँ
निकल
आएँगी
!
एक
और
घटना
तमिलनाडु
की
है
!
वहाँ
एक
महिला
कलेक्टर
ने
तय
किया
कि
ऑफिस
में
काम
करने
वाली
तृतीय
और
चतुर्थ
श्रेणी
की
सभी
महिलाओँ
को
साइकिल
दी
जाएगी
!
इसके
बाद
उन
महिला
कर्मचारियों
का जो
आत्मविश्वास
बढा
उससे
सभी
दंग
रह
गए
!
इस
लेखिका
ने
एक
बार
देवदासियों
के
आर्थिक
पुनर्वास
का
एक
कार्यक्रम
आरम्भ
किया
!
वे
काम
तो
सीख
रही
थीं,
लेकिन
बहुत
अधिक
उल्लास
न
था
!
फिर
उनके
लिए
व्यक्तित्व
विकास
कार्यक्रम
चलाने
की
योजना
बनी
!
कार्यक्रम
का
नियोजन
करनेवाली
एक
शिक्षाविद्
महिला
थीं
!
उन्होंने
केवल
चार
कार्यक्रमों
पर
जोर
दिया
--
सामूहिक
गीत
गाना,
मार्च
पास्ट
और
झण्डे
को
सलामी
देना,
साइकिल
चलाना
और
फोटोग्राफी
!
इस
कार्यक्रम
का
परिणाम
जादुई
रहा
!
व्यक्तिमत्व
विकास
की
ही
एक
मिसाल
इला
भट्ट
की
संस्था
'सेवा'
है
!
इसकी
महिलाएँ
कम
पढी
लिखी
होने
के
बावजूद
वीडियो
फिल्में
बनाना
सीख
चुकी
हैं
!
अपना
विषय
खुद
चुनती
हैं
!
खुद
बजट
बनाती
हैं,
खुद
स्क्रिप्ट
लिखती
हैं
और
शूटिंग
करती
हैं
!
इसी
तरह
महाराष्ट्र
के
औरंगाबाद
जिले
में
एक
बार
स्त्रियों
को
मिस्त्री
बनने
का
प्रशिक्षण
दिया
गया तो
उन्होंने
माँग
की
--
हमें
मजदूर
नहीं
मालिक
बनना
है
!
फिर
अगले
छह
महीने
उन्हें
सिखाया
गया
कि
ग्राम
पंचायतों
के
छोटे-छोटे
कामों
के
ठेके
पाने
के
लिए
टेंडर
कैसे
भरे
जाते
हैं,
खर्चे
का
और
लगने
वाले
सामान
का
हिसाब
कैसे
किया
जाता
है,
मजदूर
कैसे
लगाए
जाते
हैं,
मजदूरी
कैसे
तय
होती
है,
मजदूरों
से
कैसे
काम
करवाया
जाता
है
और
उनके
काम
का
निरीक्षण
कैसे
किया
जाता
है
!
ग्राम
पंचायतों
में
महिला
आरक्षण
के
बाद
ऐसी
घटनाएँ
पढने-सुनने
में
आई
कि
कैसे
महिला
सरपंचों
को
भ्रष्टाचार
के
घोटाले
में
फँसाकर
उन्हें
अपमानित
किया
गया,
पन्द्रह
अगस्त
पर
उन्हें
ध्वजारोहण
का
हक
नहीं
दिया
गया,
इत्यादि
!
लेकिन
दूसरी
तरफ
ऐसी
भी
घटनाएँ
सामने
आई
हैं
जहाँ
महिला
सरपंचों
ने
अच्छे
काम
कर
दिखाए,
खासकर
शिक्षा
और
जल
आपूर्ति
के
क्षेत्र
में
!