मेरी प्रांतसाहबी -- My days as Assistant Collector --13
मेरे पांच तहसिलों में एक था मावल तहसिल जिसका मुख्यालय वडगांव में है। लोणावला और खंडाला जैसे टूरिस्ट केंद्र इसी तहसिल में हैं। सन् १८११ में वडगांव में ही अंग्रेजों की लड़ाई मराठों से हुई जिसमें अंग्रेज जीत गए और मराठाशाही का अन्त हो गया। दूसरे बाजीराब पेशवा को अंग्रजो ने कैद कर बिठूर भेज दिया जहाँ से बाद में उनके पुत्र नानासाहेब पेशवा, लक्ष्मीबाई आदि ने फिर १८५० में अग्रेजों से लडाइयाँ लड़ी। वडगाँव की लडाई में अंग्रेज कप्तान जेम्स स्टुअर्ट मारा गया और उसकी कबर वहीं सैनिक छावनी में बनी जिसे बाद में अंग्रेजों ने तहसिल कार्यालय बना लिया। सो आज भी माना जाता है कि वडगांव कचहरी में जेम्स स्टुअर्ट का भूत रहता है। यह भी माना जाता रहा कि यदि वहाँ से कोई गलत फैसला सुनाया जाता है तो रात में स्टुअर्ट का भूत आकर उस व्यक्ति को जोरदार थप्पड़ मारता है। ये तो बडी अच्छी बात है। सही फैसले किए जाएँ, ये लोगों के हक में होगा, सो उस भूत के तो आभार माने जाने चाहिये। लेकिन भूतों से जो मात खा जाये वह महसूल अधिकारी ही क्या? भूत को चकमा देने के लिये तहसिलदार के कुर्सी की जगह थोडी सी हटा दी। कबर के चारों ओर दीवार बनाकर एक संकरा सा कमरा बना दिया। भूत का बता दिया कि अरे बाबा, तुम यहाँ रहना, तुम्हारे लिए हर गुरूवार को अगरबत्ती जला देंगे। इस कमरे के अंदर आकर कोई गलत फैसला सुनाए तो उसे थप्पड़ मारना। मेरे कार्यकाल में भी मैंने ऐसे किस्से सुने कि फलाने को तहसिलदार का फैसला पसंद नही आया तो उसने चुनौती दे डाली कि हिम्मत हो तो स्टुअर्ट के कमरे के अंदर खड़े होकर यह फैसला सुनाओ। मेरे प्रशिक्षण काल में एक महीने तक मुझे मावल के तहसिलदार के पोस्ट पर रखा गया था। तब मैंने आग्रह किया कि मैं सारा कोर्ट वर्क स्टुअर्ट के कमरे से करूँगी। लेकिन उस कार्यालय के लोग यह जोखिम लेना नही चाहते थे कि भावी प्रांतसाहब से कोई गलती हो और थप्पड़ खानी पडे। उनकी ही चली। हाल में वडगांव कचहरी को नए सिरे से बांधा गया है जिसमें स्टुअर्ट की कबर और कमरा तो अपनी जगह ही रहे लेकिन तहसिलदार की कमरा बिल्डिंग के दूसरे हिस्से में चला गया है। बेचारा भूत!
वडगांव के थेड़ा आगे कामशेत गांव है और उससे आगे लोनावला। एक जमाने से कामशेत इस इलाके का ट्रेड सेंटर रहा है। पुणे मुंबई हायवे पहले इसी गांव से गुजरता था। संकरे रास्ते के दोनों ओर सोना चांदी की चिक्की मिठाइयों की तथा चावल की दुकानें। ट्रैफिक का यह हाल कि गाड़ी दो मिनट चले तो दस मिनट रूके। फिर निर्णय हुआ कामशेत बाय पास बनाने का। व्यापारियों ने उसका जमकर विरोध किया पुणे मुंबई हायवे पर रात दिन ट्रैफिक चलता था और एक तरह से दुकानों की सुरक्षा व चौकसी अपने आप हो जाती थी। बायपास बना तो उनकी दुकानों की चौकसी के लिए लोग रखने पडेंगे। लेकिन रास्ता चौडा करने के लिए अपनी दुकान पीछा हटाने को कोई तैयार नही। ऐसे ऐसे भी तर्क- इन्हें वितर्क कहना ही ठीक रहेगा। खैर बायपास बनना तय हुआ। वह रास्ता गांव के पश्चिम की पहाड़ी में बनना था। पहाडी के ऊपर एक दर्गा था, उसे हटाना पडता। दर्गे में हिन्दु मुसलमान दोनों जाते थे। सो क्या किसी की धर्म-भावना को ठेस लगेगी? सब डिविजनल मॅजिस्ट्रेट के नाते यह एन्क्वायरी मैंने की। गांव में दोनों जमातों में एका था सो कोई समस्या नही उठी। कामशेत बाइपास बना। उसके बाद तो पुणे मुंबई राजमार्ग पर धडाधड सुधार होते गए और अब वह रास्ता भी छोडकर पुणे से मुंबई बिलकुल नया रास्ता बना है जिस पर कार यात्रा केवल तीन घंटों में संपन्न हो जाती है।
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शनिवार, 24 मई 2008
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