शनिवार, 24 मई 2008

मेरी प्रांतसाहबी --17-- My days as Assistant Collector

मेरी प्रांतसाहबी -- My days as Assistant Collector --17
मैं प्रांतसाहेब थी तब पुणे के नजदीक ईगल फलास्क की फॅक्टरी में प्रिंस आगाखान की व्हिजिट तय हुई। प्रिस आगाखान खोजा जाति के सर्वोच्च धर्मगुरू हैं और उनकी व्हिजिट व्ही आय पी व्हिजिट थी। पारसी, बोहरी और खोजा ये तीनों जातियाँ हमारे देश की उन जातियों में से है जिनकी कार्यक्षमता और व्यावसायिक सच्चाई की मैं हमेशा कायल रही हूँ। खोजा, बोहरी या पारसी कम्यूनिटी की जनसंख्या अत्यल्प है और वे सारे प्रायः व्यापार करने वाले हैं लेकिन उनके व्यापार में एक गजब की सच्चाई और अदब है जिससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। ईगल फॅक्टरी में मैं पहले भी जा चुकी थी। लेकिन इस व्हिजिट के कारण मुझे खोजाओं के खानपान, रस्मोरिवाज आदि भी करीब से देखने को मिले। खासकर प्रिस के व्यक्तित्व ने मुझे काफी प्रभावित किया।

पुणे जिला पहाडियों और वादियों का जिला है। जिसमें जगह जगह पहाडों को काटकर रास्ते बनाये गये हैं। इन्हे घाट-रास्ता कहते हैं। एक दोपहर को मैं अपना कार्यालयीन काम कर रही थी कि खबर आई कि दिवा घाट के एक घाट रास्ते पर बस पहाड से नीची गिरी है। मैं तुरंत निकलकर वहाँ पहुँची। उपर से ही देखा जा सकता था कि बस के चक्के और कई हिस्से टूटकर अलग गिर चुके हैं। सभी प्रवासी थोडे अधिक जखमी हैं। फिर भी उन्हें अपने सामान की चिंता होना स्वाभाविक था। मदद के लिये अधिक लोग नही थे। चार आदमी एक स्ट्रेचर पर किसी को लिये ऊपर चढ रहे थे।

मैंने बचपन में गर्ल गाइड, होम गार्डस्‌ जैसी संस्थाओं में प्रशिक्षण पूरा किया था। मेरे अंदर का 'बालवीर' एकदम जाग पडा और मैं पहाडी पगडंडी से नीचे उतरने लगी। मेरे साथ के सिपाही, पटवारी और मंडल निरीक्षक को थोडी देर लगी समझने में। लेकिन फिर वे भी दौडकर अतरते हुए मेंरे पास आए। मंडल अधिकारी वयोवृद्ध थे मुझसे कहा- आप ऊपर आ जाइये। गांव से मदद आ रही है, इन तक पहुँचाना हमारी जिम्मेदारी है। लेकिन फिलहाल कलेक्टर साहब को सूचना पहुँचाना आवश्यक है जो आप ही कर सकती हैं। मैंने पल दो पल उसे देखा। इस आदमी ने अपने पचीस तीस वर्ष इसी काम में लगाए होंगे। यह सही कह रहा है। प्रांत अधिकारी का मुख्य काम यह नही है कि कूद पडो- बल्कि यह है कि उचित निर्देश दे-देकर सबसे काम करवाओ। मै उपर आई। कलेक्टर से वायरलेस पर बात की। उन दिनों मोबाइल या एस टी डी जैसी सुविधाएं नही थीं। कलेक्टर ने पूछा- कितने जखमी होंगे, कब तक पुणे पहुँचेंगे, सबको संचेती हॉस्पिटल भेजा जाए वहाँ मैं अभी डॉक्टर संचेती से बात करता हूँ, तुम शाम साडे छः बजे तक वापस आकर मुझसे मिलो इत्यादि। फिर रात को हम दोनों संचेती हॉस्पिटल गए मरीजों को देखने। जो पांच व्यक्ति मर चुके थे उनके कम्पन्सेशन के लिए नोट बनाकर शासन के पास भेजी। जहाँ रास्ते के खराब मोड के कारण बस दुर्घटना हुई थी उसे सुधारने का निर्देश सडक विभाग को भेजा, जब कहीं जाकर उस दिन की डयूटी पूरी हुई।
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