शनिवार, 24 मई 2008

मेरी प्रांतसाहबी --8-- My days as Assistant Collector

मेरी प्रांतसाहबी -- My days as Assistant Collector --8
इसी कार्यकाल में एक बार तत्कालिन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का पुणे दौरा तय हुआ। वे खडकवासला स्थित नॅशनल डिफेन्स अकादमी (NDA) और सेंट्रल वॉटर ऍण्ड पॉवर रिसर्च इन्स्टिटयूट (CWPRS) में भी जानेवाली थीं। प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था का तामझाम बहुत बडा होता है, दिल्ली से कई गुप्तचर अधिकारी पहले से आ धमकते हैं। फिर भी लोकल कलेक्टर और प्रांतसाहब की जिम्मेदारी बनी रहती है। इसलिये मैं भी पहले एक इन्स्पेक्शन दौरा करने गई। NDA में ऍडमिरल आवटी थे और CWPRS में डॉ. सक्सेना। एक महिला अधिकारी इन्स्पेक्शन के लिये आई इसका लाभ उठाते हुए दोनों ने तत्काल मुझे सबसे पहले वह कमरे दिखाये जहाँ इंदिराजी के ठहरने या आराम की व्यवस्था थी- 'एक महिला की नजर से देखकर बताइये- यदि इसमें कोई कमी रह गई हो तो'। इंदिराजी जिस गाडी में बैठकर उस क्षेत्र में घूमनेवाली थीं उसमें बैठकर भी मैंने जायजा लिया- सीट कितनी आरामदेह है, लेग स्पेस समुचित है या नही, नजर की लेव्हल कहाँ तक जाती है और वहाँ क्या क्या दीखता है इत्यादि। लेकिन एक समस्या थी कि इंदिराजी की तुलना से मैं बहुत ही नाटे कद की हूँ। सो हम लोगो ने एक लम्बे व्यक्ति को बिठाकर फिर से सारा इन्स्पेक्शन पूरा किया।

इस बहाने इन दोनों उच्चाधिकारियों से मेरी अच्छी पहचान हो गई। बाद में एक बार मुझे ऑस्ट्रेलिया में भूगर्भ विज्ञान की पढाई के लिये आवेदन देना था जिसमें रेफरन्सेस देने थे। मैंने डॉ. सक्सेना से रेफरन्स माँगा और अपना आवेदन पत्र भी उन्हें दिखा दिया। इसमें मैंने लिखा था कि चूँकि मैं पानी संकट से जूझने वाले एक प्रांत में हूँ, अतः यह पढाई मेरे काम आयेगी। डॉ सक्सेना ने उसे काट दिया। लिखवाया कि भारतीय प्रशासन सेवा के अधिकारी सरकार में वरिष्ठ भूमिकाएँ निभाते हैं। योजना, उनका कार्यान्वयन, नीतिनिर्धारण इत्यादि के लिये पानी के स्रोतों की जानकारी के तकनीकी तौरतरीके मालूम होना आवश्यक है, अतएव इस पढाई का लाभ मेरे कैरियर के अगले पच्चीस वर्षों में मुझे तथा मेरी सरकार को होगा। अपने काम के विषय में इस तरह दूरगामी विचार करने की सीख मुझे उनसे मिली। तब से मेरी आदत बन गई कि कोई नई योजना बनाते समय उसके शीघ्र परिणाम और दूरगामी परिणाम दोनों को सोचो, उसी हिसाब से योजना बनाओ, उसके नियम बनाओ। कई बार मैंने दूसरों के लिखे बायोडाटा भी इसी प्रकार सुधार दिए और उनसे धन्यवाद लिया, तब मुझे डॉ सक्सेना की याद आती है। दुर्भाग्यवश वे जल्दी ही कालवश हो गए।
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