शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

XX मेरी प्रांतसाहबी -- भूमिका

मेरी प्रांतसाहबी -- आमुख -- ललित सुरजन

मेरी प्रांतसाहबी -- आमुख -- ललित सुरजन

भूमीका

     श्रीमती लीना मेहेंदले से मेरा पहला परिचय हिन्दी साहित्य की सजग-सह्रदय पाठिका के रूप मे हुआ था ! वह भी फोन पर हुए एक संक्षिप्त वार्तालाप पर सीमित था ! इसके बाद धीरे-धीरे मैंने उनके अन्य रूपों को जाना ! आज जब उनकी नवीनतम पुस्तक के बारे में कुछ लिखने का अवसर आया है तो यह उचित ही होगा कि मैंने जैसा उन्हें जाना है उसे पाठकों के सामने वैसा रख सकूँ !
     श्रीमती मेहेंदले, जैसा कि कुल नाम से पता चलता है, मराठी भाषी हैं ! लेकीन उनके बाल्यकाल का एक बडा हिस्सा बिहार में बीता है ! इस नाते वे सहज रूप से द्विभाषी है ! दो समृद्ध भाषाओं पर समान अधाकार का उन्होंने रचनात्मक तरीके से खूब उपयोग किया है ! एक तरफ लीना जी ने भाषाओं में समान अधिकार के साथ स्वतंत्र लेखन करती हैं ! मुझे इस बात की निजी तौर पर प्रसन्नता है कि उनके अनेक लेख, कहानियाँ और कविताओं को एक संपादक के रूप में मैं नियमित प्रकाशित करता रहा हूँ ! हिन्दी के अन्य अनेक पत्रों में भी उनकी रचनाएँ लगातार छप रही हैं
     श्रीमती लीना मेहेंदले का एक और परिचय है ! वे भरतीय प्रशासनिक सेवा की उच्चाधिकारी हैं ! आई..एस. की बहुविध जिम्मेदारियों व व्यस्तता के बीच भी उन्होंने रचनात्मक लेकन से अपना प्रगाढ संबंध बनाए रखा है ! यह मानना बिल्कुल भी गलत न होगा कि वे जगदीशचन्द्र माथुर, बालकृष्ण राव, विनोदचन्द्र पाण्डेय, सीताकांत महापात्र और अशोक वाजपेयी की परंपरा की लेखिका हैं ! यह जरूर है कि लीना जी स्वभाव से संकोची हैं और साहीत्य पर दावा जतलाने जैसा कोई काम उन्होंने नहीं किया है ! शायद इसीलिय अपने उपरोक्त पूर्ववर्तियों से हटकर सरकारी नौकरी में लेखक-सुलभ विभागों और पदों पर काम करने के बजाय वे अक्सर ऐसे दायित्वों को संभालती रहीं जिन्हें "कठोर" माना जाता रहा है !
     प्रस्तुत निबंध संग्रह लीना जी के एक ओर रूप से हमारा परिचय करता है ! इसका पहला ही अध्याय "मेरी प्रांतसाहबी" एक सुदीर्घ लेक है ! इसमे उन्होंने आई.ए.एस. अधिकारी के रूप में अपने प्रारंभिक कार्यकाल का रोचक ब्यौरा प्रस्तुत किया है !  ऐसे अनेक अधिकारी हैं जिन्होंने अंग्रेजी में आत्मकथाएँ लिखी हैं ! इसमें सबसे ज्यदा चर्चित पुस्तक "अ टेल टोल्ड बाई एन ईडियट" है जो मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव रहे आर.पी.नरोन्हा ने लिखी थी ! हिन्दी में ऐसे संस्मरणों का अभाव है ! मुझे तो सर्फ सुशीलचन्द्र वर्मा ही नाम याद आता है, जिन्होंने देशबन्धु के लिए "कलेक्टर की डायरी" शीर्षक से अत्यन्त रोचक शैली में अपने संस्मरण लिखे थे ! इस नाते कहा जा सकता है कि लीनाजी सुशीलचन्द्र वर्मा की परंपरा को आगे बढा रही हैं ! यहाँ यह कहना मुझे उचित लग रहा है कि भाषा के धनी हिन्दीभाषी अधिकारी अगर ऐसे वृतांत लिखें तो हिन्दी साहीत्य कुछ और समृद्ध हो जायगा !
     "मेरी प्रांतसाहबी"अध्याय किसी हद तक लेकीका के संवेदनशील मन का दर्पण है ! इसे आगे बढाते हुए उन्हें परवर्ती काल के अनुभवों को भी लिपिबद्ध करना चाहीए ! एक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में वह एक बहुमुल्य दस्तावेज बन सकेगा ! इस संकलन मे लीनाजी ने प्रशासन से जुडे और बहुत से मुद्दों पर बेबाक विचार व्यक्त किए है ! यहां भी एक अधिकारी के रूप में उनका अनुभव और अवलोकन हमारे सामने आता है ! कन्या शिशु की हत्या, भ्रष्टाचार, सरकारी छुट्टीयाँ, पर्यावरण, परीक्षा पद्धती, महिला सशक्तिकरम जैसे जुदा-जुदा प्रश्नों पर लेखीका ने विचार किया है ! इनसे पता चलता है कि लेखिका ने नौकरी के लिए नौकरी नहीं की है, बल्कि एक सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने की कोशिश की है ! ये लेख समय - समय पर कुछ जाने-माने अखबारो में प्रकाशित हुए हैं ! जरूरत इस बात की है कि इन विचारों को प्रस्थान बिन्दु मानकर बात आगे बढाई जाए ! प्रशासनिक सुधार आयोग जैसी संस्थाओं को इन लेखों का नोटिस लेना चाहिए !
       इस संकलन में लीनाजी ने अपने प्रिय कवि कुसुमाग्रज पर एक लेख लिखा है ! वहीं हिन्दी, मराठी के कुछ अन्य साहित्यकारों के व्यक्ति चित्र उन्होंने प्रस्तूत किया है ! गीता के बुद्धियोग पर भी एक लेख इसमें है ! इस तरह प्रस्तुत संकलन किसी विषय विशेष पर केन्द्रित नहीं हैं ! अनेकानेक विषयों का समावेश होने से पाठक को यह लाभ मिलता है कि वह लेखिका की समग्र विचार सरणी से परिचित हो सकता है ! किन्तु इन निबंधों की सबसे बडी शक्ति इस तथ्य में निहित है कि लेखिका कहीं भी सामाजिक सरोकारों से विमुख नहीं होती ! एक रचनाकार समाज सक्रिय होना स्वाभाविक है ! एक अधिकारी से भी समाजोन्मुख होने की अपेक्षा की जाती है ! अपने इन दोनों रूपों के साथ चलते हुए लीनाजी ने मणिकांचन-योग प्रस्तुत किया है, ऐसा कहूँ तो गलत नहीं होगा !
      जीवन विवेक और अनुभवों से लमृद्ध इस निबंध संग्रह का हिन्दी जगत में स्वागत होगा ! यह विश्वास बनता है मैं लीनीजी को निरंतर रचनाशील बने रहने के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ !
                                                                         -ललित सुरजन

रायपुर                                                                          
२ जनवरी,२००९


******* मेरी प्रांतसाहबी अनुक्रम -- third collection of my articles

मेरी प्रांतसाहबी छप गया है



सामाजिक सरोकारों से संबंधित मेरे हिन्दी लेखोंका तीसरा संग्रह "मेरी प्रांतसाहबी" का लोकार्पण 14 सितम्बर हिन्दी दिवस के अवसर पर संपन्न हुआ।
पहले दो संग्रह थे जनता की राय और है कोई वकील लोकतंत्रका।
लोकार्पण कार्यक्रम का अतापता --
Monday, 14 th sep, evening 5.00
at
Hindustani Prachar Sabha,
Mahatma Gandhi Memorial Building,
7, Netaji Subhash Road, Mumbai.
In the Hindi Diwas Samaroh arranged by Maharashtra Rajya Hindi Sahitya Academy.

प्रकाशक -- संकेत प्रकाशन, 5 उपेन्द्रनाथ अश्क मार्ग, (पुराना खुसरो बाग रोड) इलाहाबाद फोन 09450632885
प्रस्तावना -- ललित सुरजन, रायपुर फोन 09827141800प्रकाशक संकेत                                                             
अनुक्रम
1. मेरी प्रांतसाहबी 1-21-- नया ज्ञानोदय दिल्ली, y
2. पेपर लीक का जबाब है
3. कौन करेगा ये वादा
4. व्यवस्था की एक और विफलता y
5. इस ढीली दण्ड प्रक्रिया को बदलिये y
6. हिन्दी भाषा और मैं
7. संगणक और हिन्दी -- जरूरत है मूलतत्व तक जाने की
8. गो. नी. दाण्डेकर
9. मथना -- एक सागर को
10. डॉ. राज बुद्धिराजा
11. भगवद्गीताप्रणीत बुद्धियोग -चित्रप्रत
12. तेलगी के दायरे में--जनसत्ता ११.१२.०३ 
13. इस चुनाव में मैं बेजुबान
14. विभिन्न राज्यों में महिला विरोधी अपराधों का विश्लेषण -- मासिक हिमप्रस्थ, सिमला में प्रकाशित
15. राजस्थान -- क्या है जनमने और पढने का हक  + शिशु-लिंग-अनुपात
16. महिला सशक्तीकरण की दिशा में
17. सुरीनामियोंकी चिन्ता
18. उन्मुक्त आनंद का फलसफा
19. बायोडीजल -- अपार संभावनाएँ
20. हाथ जनता की नाडी पर
21. अगस्त क्रांति भवन -- अर्थात् कथा 9 अगस्त की इमारत की
22. मालूम ही नही कि सुभाष स्वतंत्रता सेनानी थे
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इससे पहले प्रकाशित दो संग्रह थे --
जनता की राय
है कोई वकील लोकतंत्र का