शनिवार, 24 मई 2008

मेरी प्रांतसाहबी --12-- My days as Assistant Collector

मेरी प्रांतसाहबी -- My days as Assistant Collector --12
इन विधानसभा चुनावों में भी कई राज्यों में कांग्रेस हारी थी। सन्‌ अस्सी के आते आते आयाराम, गयाराम प्रथा की शुरूआत हो गई। प्रशासनिक अधिकारी और राजकीय नेताओं के बीच भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एकी और गुटबाजी होने लगी। ऐसे में कानून, नियम या नैतिकता मानने वाले अधिकारी उनकी आँखों में खटकने लगे। ये सारे अधिकारी एक एक कर अकेले पडते गए और उनकी पकड कमजोर पड़ती गई। संतोष की बात इतनी रह गई कि ज्यूनियर अधिकारी और जनमानस के बीच वे रोल मॉडेल बने रहे। इसलिये यह उम्मीद खतम नही हुई कि कोई ऐसा भी अधिकारी होगा जो अपने आदर्शों के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए भी अकेला नही पडेगा और प्रशासन में अपनी कारगुजारी से कुछ अच्छा कर लेगा।

इन चुनावों के जरा सा पहले हवेली तहसिल में एक नये तहसिलदार नियुक्त हुए थे श्री शेटे। इसी कार्यालय को चुनावी अधिकारी का कार्यालय घोषित किया था और मुझे यहीं बैठकर रिटर्निंग आफिसर के सारे काम करने थे। शेटे मेरे असिस्टंट रिटर्निंग ऑफिसर भी थे। पहले दिन की ही घटना है। खाली समय में काम करने के लिये मैं कई फाइलें साथ ले गई थी और उन्हें देख रही थी। कुछ नामांकन पत्र भरे गए। तीन बजे उस दिन के नामांकन का समय खतम हुआ। उसके बाद नामांकनों की लिस्ट नोटिस बोर्ड पर लगाना और कई तरह के कागजात कलेक्टर के पास भिजवाने थे। तीन बजकर दो मिनट पर श्री शेटे ने वे सारे कागज हस्ताक्षर के लिए मेरे सामने रख दिये। मैंने आश्चर्य से उन्हें देखा- यहाँ का शिरस्तेदार (हेड क्लर्क) इतना कार्यक्षम कब से हो गया? पहली बार फाइलों से सर उठाकर मैंने आस पास का जायजा लिया। शेटे की टेबुल मेरे बगल में ही थी। वहाँ उन्होंने कुछ देर पहले एक टाइपराइटर मँगवा कर रख लिया था और सारे फॉर्म्स खुद ही टाइप कर तैयार रखे थे। इधर तीन बजे, उधर उनके कागजात तैयार। मुझसे कहा मैडम, कई बार ये क्लर्क वर्क बड़े स्लो होते हैं। मैं अभी नया हूँ। कौन कितनी जिम्मेदारी से काम करता है यह मुझे अभी मालूम नही है। चुनावी कामों में रिस्क लेना ठीक नही है। सो कर दिया मैंने सारा काम। देर भी कितनी लगती है? श्री शेटे जीप चलाने से लेकर खसरे के कागजात भरना, टाइपिंग इत्यादि सारे काम जानते थे। मेरे अत्यंत कार्यकुशल अधिकारियों में से वे एक थे।

किसी को भी कुशलता से काम करते हुए देखना एक बडी सुखद बात होती है। उतनी ही सुखद जैसे किसी अच्छे गायक को सुनना या अच्छे क्रिकेटर की बल्लेबाजी देखना। ऐसा ही एक नमूना और देखने को मिला। चुनावों के लिए हमने कुछ लोग डेलीवेजेस पर लगाए थे। चुनाव समाप्त होते ही उन्हें भी हटा देना था। वैसे इधर मेरे व कलेक्टर के कार्यालय में कई वेकेन्सियाँ थी लेकिन उन्हें भरने के लिए समय रहते कोई वार्षिक प्लानिंग इत्यादि करने का रिवाज नही था। कॅरियर प्लानिंग कुछ भी नही था। आज भी नही है। मुझे एक पत्र मिला। अत्यंत सुन्दर हस्ताक्षर में और बिल्कुल सही मुद्दे उठाते हुए पत्र लेखक ने लिखा था कि चुनावी दिनों में उसने कितनी कार्यक्षमता से कौन कौन काम किए थे। आगे भी उसे कंटिन्यू करने की विनति की थी। उस पत्र का सुंदर मोतिया जैसा हस्ताक्षर, सही मुद्दे, पत्र की सहज सरल भाषा इत्यादि ने मुझे बडा प्रभावित किया। उसका काम व कार्यकुशलता भी मैं देख चुकी थी। चुनावी व्यस्तता में ही समय निकालकर मैंने कलेक्टर ऑफिस से अपनी सारी वेकेन्सी भरने की अनुमति ली और तीन अच्छे क्लर्कों को कायम कर लिया। यह पत्र लेखक आज कलेक्टर कार्यालय में क्लास वन अधिकारी के पद पर पहुँचा हुआ है।
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