शनिवार, 24 मई 2008

मेरी प्रांतसाहबी --4-- My days as Assistant Collector

मेरी प्रांतसाहबी -- My days as Assistant Collector --4
मेरे हाजिर होने के थोड़े ही दिनों बाद गणपति उत्सव आया। पूरे महाराष्ट्र में और खासकर पुणे में यह जोर शोर से मनाया जाता है। भाद्रपद चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना होती है और अनन्त चतुर्दशी के दिन विसर्जन! लेकिन कई लोग तीसरे, पांचवें या नौंवे दिन भी विसर्जन करते हैं। मेरे हिस्से में तलेगांव, लोनावला और भोर शहर थे जहाँ रात देर तक विसर्जन समारोह चलता था। ब्रिटिश राज में कभी किसी जमाने में वहाँ दंगे हुए थे सो नियम था कि विसर्जन के दिन प्रांतसाहब को वहीं डयूटी करनी है- ताकि दंगे न हों। इसी से तीनों के विसर्जन दिन भी अलग अलग थे। गाँव के प्रमुख चौराहे में एक मंडप और शमियाना खड़ा किया जाता- प्रांतसाहेब तथा पुलिस उप अधीक्षक के लिए। उन दिनों एक प्रौढ, अनुभवी उपअधीक्षक श्री पाटील थे। हमलोग रातभर वहाँ बैठकर मूँगफली, भुट्टा, चाय पकौड़े इत्यादि खाते-पीते रहते थे। दंगों का डर कबका विदा हो चुका था। अतएव टेन्शन नही था। विसर्जन के लिए चली मूर्ति के सामने ढोल व लेझीम सहित नाचने खेलने की प्रथा है। खेलने वाले हमारे पास आकर देर तक रूक कर पूरे जोश के साथ हमें खेल दिखाते थे। यह बारिश का महीना होता है और अक्सर हल्की बूंदाबांदी हो जाती है। ऐसे समय ढोल या हलगी का चमड़ा ढीला पड़ जाता और उससे खण्ण की आवाज की जगह भद्द की आवाज आती थी। हमारे मंडप में भुट्टे आदि भूनने के लिए आग या गैस जलाई जाती थी। उसी पर वे अपने ढोल तथा हलगी के चमडे को तपाते थे। फिर खेल शुरू हो जाता। इस आधे पौने घंटे में उनसे अच्छी बातें हो जातीं और गाँव की जानकारी भी- खास कर फसलों की जो तबतक भर चुकी होती हैं। उससे अंदाज हो जाता कि उस साल फसल और अनाज की उपलब्धता कैसी रहेगी।

इस वार्षिक उत्सव के लिए कई गॉवों के लेझिम-पथक पूरे साल भर तैयारी करते हैं। उनमें काम्पिटीशन होती है कि किसका खेल सबसे अच्छा रहा। मुलशी तहसिल का भूगांव लेझीम पथक मुझे आज भी याद है- जो उन दिनों पूरे जिले में एक नंबर पर माना जाता था। गणपति उत्सव के ढोल के ताल और सुर मेरे दिमाग में अंदर तक पैठ गए हैं। मुझे कभी इनसे कोई परेशानी नहीं होती। लाऊडस्पीकरों के लाऊड संगीत से मुझे सख्त ऑबजेक्शन है। कभी कभी तो 'भूले बिसरे गीत' में बजने वाले मेलोडियस गाने भी शोर जैसे लगते हैं- लेकिन ढोल-हलगी कभी शोर नहीं लगती।
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