भूमीका
श्रीमती लीना मेहेंदले से मेरा पहला परिचय हिन्दी साहित्य की सजग-सह्रदय
पाठिका के रूप मे हुआ था ! वह भी फोन पर हुए एक संक्षिप्त वार्तालाप पर
सीमित था !
इसके बाद धीरे-धीरे मैंने उनके अन्य रूपों
को जाना ! आज जब उनकी नवीनतम पुस्तक के बारे में कुछ लिखने का अवसर आया है तो यह उचित ही
होगा कि मैंने जैसा उन्हें जाना है उसे पाठकों के सामने वैसा रख सकूँ !
श्रीमती मेहेंदले, जैसा कि कुल नाम से पता चलता है, मराठी
भाषी हैं !
लेकीन उनके बाल्यकाल का एक बडा हिस्सा बिहार में बीता है ! इस
नाते वे सहज रूप से द्विभाषी है ! दो समृद्ध भाषाओं पर समान अधाकार का
उन्होंने रचनात्मक तरीके से खूब उपयोग किया है ! एक तरफ लीना जी ने
भाषाओं में समान अधिकार के साथ स्वतंत्र लेखन करती हैं ! मुझे
इस बात की निजी तौर पर प्रसन्नता है कि उनके अनेक लेख, कहानियाँ
और कविताओं को एक संपादक के रूप में मैं नियमित प्रकाशित करता रहा हूँ ! हिन्दी
के अन्य अनेक पत्रों में भी उनकी रचनाएँ लगातार छप रही हैं !
श्रीमती लीना मेहेंदले का एक और परिचय है ! वे भरतीय प्रशासनिक
सेवा की उच्चाधिकारी हैं ! आई.ए.एस. की
बहुविध जिम्मेदारियों व व्यस्तता के बीच भी उन्होंने रचनात्मक लेकन से अपना प्रगाढ
संबंध बनाए रखा है ! यह मानना
बिल्कुल भी गलत न होगा कि वे जगदीशचन्द्र माथुर, बालकृष्ण राव, विनोदचन्द्र
पाण्डेय, सीताकांत महापात्र और अशोक वाजपेयी की परंपरा की लेखिका हैं ! यह जरूर है
कि लीना जी स्वभाव से संकोची हैं और साहीत्य पर दावा जतलाने जैसा कोई काम उन्होंने
नहीं किया है ! शायद इसीलिय अपने उपरोक्त पूर्ववर्तियों से हटकर सरकारी नौकरी में
लेखक-सुलभ विभागों और पदों पर काम करने के बजाय वे अक्सर ऐसे दायित्वों को संभालती
रहीं जिन्हें "कठोर" माना जाता रहा है !
प्रस्तुत
निबंध संग्रह लीना जी के एक ओर रूप से हमारा परिचय करता है ! इसका पहला ही अध्याय
"मेरी प्रांतसाहबी" एक सुदीर्घ लेक है ! इसमे उन्होंने आई.ए.एस. अधिकारी
के रूप में अपने प्रारंभिक कार्यकाल का रोचक ब्यौरा प्रस्तुत किया है ! ऐसे अनेक अधिकारी हैं जिन्होंने अंग्रेजी में
आत्मकथाएँ लिखी हैं ! इसमें सबसे ज्यदा चर्चित पुस्तक "अ टेल टोल्ड बाई एन
ईडियट" है जो मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव रहे आर.पी.नरोन्हा ने लिखी थी !
हिन्दी में ऐसे संस्मरणों का अभाव है ! मुझे तो सर्फ सुशीलचन्द्र वर्मा ही नाम याद
आता है, जिन्होंने देशबन्धु के लिए "कलेक्टर की डायरी" शीर्षक से
अत्यन्त रोचक शैली में अपने संस्मरण लिखे थे ! इस नाते कहा जा सकता है कि लीनाजी
सुशीलचन्द्र वर्मा की परंपरा को आगे बढा रही हैं ! यहाँ यह कहना मुझे उचित लग रहा
है कि भाषा के धनी हिन्दीभाषी अधिकारी अगर ऐसे वृतांत लिखें तो हिन्दी साहीत्य कुछ
और समृद्ध हो जायगा !
"मेरी प्रांतसाहबी"अध्याय किसी हद तक लेकीका के संवेदनशील मन का
दर्पण है ! इसे आगे बढाते हुए उन्हें परवर्ती काल के अनुभवों को भी लिपिबद्ध करना
चाहीए ! एक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में वह एक बहुमुल्य दस्तावेज बन सकेगा ! इस
संकलन मे लीनाजी ने प्रशासन से जुडे और बहुत से मुद्दों पर बेबाक विचार व्यक्त किए
है ! यहां भी एक अधिकारी के रूप में उनका अनुभव और अवलोकन हमारे सामने आता है !
कन्या शिशु की हत्या, भ्रष्टाचार, सरकारी छुट्टीयाँ, पर्यावरण, परीक्षा पद्धती,
महिला सशक्तिकरम जैसे जुदा-जुदा प्रश्नों पर लेखीका ने विचार किया है ! इनसे पता
चलता है कि लेखिका ने नौकरी के लिए नौकरी नहीं की है, बल्कि एक सामाजिक
उत्तरदायित्व को निभाने की कोशिश की है ! ये लेख समय - समय पर कुछ जाने-माने
अखबारो में प्रकाशित हुए हैं ! जरूरत इस बात की है कि इन विचारों को प्रस्थान
बिन्दु मानकर बात आगे बढाई जाए ! प्रशासनिक सुधार आयोग जैसी संस्थाओं को इन लेखों
का नोटिस लेना चाहिए !
इस संकलन में लीनाजी ने अपने प्रिय कवि कुसुमाग्रज पर एक लेख लिखा है ! वहीं
हिन्दी, मराठी के कुछ अन्य साहित्यकारों के व्यक्ति चित्र उन्होंने प्रस्तूत किया है ! गीता
के बुद्धियोग पर भी एक लेख इसमें है ! इस तरह प्रस्तुत संकलन किसी
विषय विशेष पर केन्द्रित नहीं हैं ! अनेकानेक विषयों का समावेश
होने से पाठक को यह लाभ मिलता है कि वह लेखिका की समग्र विचार सरणी से परिचित हो
सकता है ! किन्तु इन निबंधों की सबसे बडी शक्ति इस तथ्य में निहित है कि लेखिका कहीं भी
सामाजिक सरोकारों से विमुख नहीं होती ! एक रचनाकार समाज सक्रिय
होना स्वाभाविक है ! एक अधिकारी से भी समाजोन्मुख होने की अपेक्षा
की जाती है !
अपने इन दोनों रूपों के साथ चलते हुए लीनाजी ने मणिकांचन-योग
प्रस्तुत किया है, ऐसा कहूँ तो गलत नहीं होगा !
जीवन विवेक और अनुभवों से लमृद्ध इस निबंध संग्रह का हिन्दी जगत में स्वागत
होगा ! यह विश्वास बनता है मैं लीनीजी को निरंतर रचनाशील बने रहने के लिए अपनी
शुभकामनाएं देता हूँ !
-ललित सुरजन
रायपुर
२
जनवरी,२००९
1 टिप्पणी:
The book review leena Mehendale's My Days as Assistant Collector clearly reveals the social sensitivity of this righteous puritian IAS Oficer . Leena Mehendale Madam has proved through her positive apparoch to personal as well as professional life her courage of conviction and humility. Hats off to such senior I.A.S PERSONALITIES . THEY ARE REAL LAMP LIGHTERS ! Geeta
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