8/12/06
सांगली
में कलेक्टरी (अपूर्ण)
सन्
१९८३ जनवरी में महाराष्ट्र
के सांगली जिले में कलेक्टर
के पद पर मेरी नियुक्ती हुई।
इससे पहले करीब डेढ वर्ष में
इसी जिला परिषद पर मुख्य
कार्यकारी अधिकारी के पद पर
थी। अगले डेढ साल मैं कलेक्टर
रही। इन तीन वर्षों मे मैंने
जो काम किये उसमे से देवदासी
आर्थिक पुनर्वस प्रकल्प की
चर्चा तो कई जगह हुई है। लेकिन
कुछ और भी काम मैंने किये जो
लीक से हटकर थे।
उस दिनों
में भी सांगली जिले पर से अकाल
की छाया समाप्त नही हुई थी।
यहाँ के तीन तहसील शिराळा,
वाळवा और तासगांव
के लिये अकाल का कोई खतरा नही
होता।क्यों कि ये तीनों जिले
कृष्णा,
वारणा और येरळा
नदियों के पानी से बारह महीने
सिंचन का लाभ पाते हैं।तीन
पूर्वीय तहसील जत,
कवठे महांकाळ और
आटपाडी ,
कायम ही रेनशॅडो
झोन में पडते हैं। अर्थात्
बारिश हुई तो हुई और न हुई तो
न हुई। बचे दो तहसील-
मिरज और खानपूर
जिनको अंशतः पानी मिल जाता
है और कई बार अकाल के प्रकोप
से जूझना भी पडता है।
१९७२-७५
में तीन वर्ष तक लगातार आधे
से अधिक महाराष्ट्र मे भारी
भयंकर अकाल पडा। उसके परिणाम
स्वरूप
एक योजना
बनी-
रोजगार हमी
योजना या एम्प्लायमेंट गॅरंटी
स्कीम। इसके दो भाग थे। पहला
था गांव गांव से जो अकालग्रस्त
लोग गांव छोडकर अनाज की तलाश
में भटक रहे थे उन्हें तत्काल
कोई मजूरी वाला काम उपलब्ध
कराया जाय ताकि उनकी कुछ आमदनी
हो जिससे वे अनाज खरीद सकें।
ये सारे काम अकुशल किस्म के
होते थे प्रायः ये काम मिट्टी,
कंकड ढोना,
रास्ते बनानाया
छेटे-बडे
बांध बनाना,
तालाब की सुदाई
आदि प्रकार के होते थे। स्कीम
का जो दूसरा भाग सोचा गया था
वह प्रशिक्षा से जुडा हुआ था।
सोच यह थी कि वे जो अकुशल काम
करने वाले लोग होंगे उन्हें
धीरे धीरे कुछ कौशल्य-शिक्षा,
भी दी जायेगी
ताकि वे कुशल या कमस कम अर्धकुशल
कारीगर बनें और उन्हें अपनी
आमदनी बढाने का मौका मिले।
अब ये अलग बात है कि इस दूसरी
सोच के प्रति १९८१ तक कोई खास
योजना नही बन पाई। जब ऐसी योजना
बनी तो वह एकात्मिक ग्रामीण
विकास कार्यक्रम (IRDP)
के तहत बनी-
और सही अर्थों
मे वह सफल नही हो सकी। खैर।
मेरे
सांगली आने से पूर्व के दस
वर्षों में अकाल ग्रस्त चारों
तहसीलों में सडकें बनाने के
कई काम पूरे हो चुके थे और
सिंचाई के लिये बडे और छोटे
इरिगेशन प्रोजेक्टस् भी लिये
जा चुके थे। अब कोई ऐसे बडे
रास्ते
या सिंचाई तलाब के काम नही बचे
थे जिनपर एक साथ पांचसौ हजार,
दो हजार मजदूर लगाए
जा सकें। पिछले दस वर्षों का
परिपाट यह था कि पीडब्ल्यूडी
या इरिगेशन डिपार्टमेंट से
कोई एक बडा प्रोजेक्ट बनवाकर
मंजूरी दे दो और दो तीन वर्ष-
उस इलाके की चिन्ता
समाप्त। चाहे जितने लोग अकुशल
मजबूरी करना चाहें,
सब को उन कामों पर
रुमविष्ट किया जा सकता था।
लेकिन अब परिस्थिती बदल चुकी
थी। ऐसे कार्यस्थल अब समाप्त
हो चले थे। तब मुंबई मंत्रालय
से समाप्त हो चले थे। तब मुंबई
मंत्रालय से सूचना आई कि कृषि
और वनी करण संबंधित काम शुरु
किये जायें। वनीकरण में गढ्ढों
की खुदाई,
पेड लगाना और चारों
ओर बाड के लिये छोटी-
डेढ दो फूट उंची,
मिठ्ठी या पत्थर
की दीवार बनाना शामिल था। कृषि
आधारित काम में अक्सर नाली
बंडिंग और किसान के खेत को
समतल कर उसपर कण्टर-
बंडिंग के काम किये
जाने थे।
मैंने
महसूनकिया कि इन कामों का
निर्देश देते समय समग्र चिंतन
की बात पीचे छूट गई थी। सीधा
हिसाब कोई नही लगाना चाहता
था कि ऐसे काम पर हम कितने मजदूर
लगा पायेंगे और कितने दिनों
तक। तब सांगली के इन चार तहसिलोंसे
काम की माँग करने वाले करी
पचास से पचपन हजार मजदूर दर्ज
थे। नाला बंडिंग,
कण्टूर बंडिंग
या बनीकरण में एक काम पर पचास
से सौ के करीब मजदूर लगाये जा
सकते थे और काम को करीब तीन
महिनो में निपटाया जा सकता
था। अर्थात् करीब पांच से दस
हजार मनुष्य दिवस का काम निकलता
था और तीस रुपये रोजाना से
मजदूरी पकडने पर काम की लागत
तीन-लाख
से अंदर ही हो जाती। इसकी तुलना
में पहले वाले रास्ते या सिंचन
तलाब के कामों मेंदस लाख तक
मनुष्य दिवस लगते और उनकी लागत
करोडों में हो जाती। अर्थात्
रोजगार हमी योजा में कृषि और
वनीकरण के काम लेने के लिये
सैकडों कामों का नियोजन करने
की जरूरत थी। यदि एक काम पर सौ
मजदूर लगाये जा सके तो पचास
हजार मजदूरों के लिये पांच
सौ काम चाहियें। हरेक का प्लान
एस्टिमेंट बनाओ,
मेजर मेंट लो
तब जाकर काम शुरु हो सकता था।
फिर काम पर सुपर विजन कैसे
किया जाय?
प्लान बनाने
के लिये ऍग्रीकल्चर ऑफिसर और
उसके तीन सर्वेयर्स की टीम
बनाकर हम उन्हें महीने में
अमुक अमुक प्लान बनाने के
निर्देश देते थे। लेकिन उस
काम को करवाने के लिये अलग टीम
की आवश्यक्ता थी। यह स्टाफ
मंजूर करवाना हो तो सरकार के
पास जाना पडेगा।
मुझे
याद आता है कि पहली बार सांगली
जिले में इस तरह के प्लान बने
जिसमें होके तहसील में जो दलके
ऍग्रीकल्चरल सर्कल होते थे
उनके हिसाब से सारणीयाँ बनीं।
किस सर्कल में कितने मजदूरों
को काम मुहैय्या करने की जरूरत
थी यह चार्ट पिछले तीन वर्षों
के माहवार हाजिरी के चार्ट
को आधार पर वना। उसमें कितने
काम मुहैय्या कराने पडेंगे,
उनके प्लान बनाने
के लिये कितनी टीम्स चाहिये
और काम करवाे के लिये कितनी।
इस पूरी जरुरत की तुलना में
हमारे पास प्रत्यक्षतः काम
करने वाले कितने अधिकारी और
स्टाफ था और हमें कितने और की
आवश्यकता थी। यह सारे गणित
हमने सारणीबद्ध रूप में किये।
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