सोमवार, 2 नवंबर 2015

सुरीनामियोंकी चिन्ता

सुरीनामियोंकी चिन्ता

published in janasatta

सातवें विश्र्व हिंदी सम्मेफह्मन के उपफह्मक्ष्य में एकत्रित हुए िVह्मन सुरीनामियों से बातSह्म्रत करने का मौका मिफह्मा उनका उत्साह, प्रेम देखने फह्मायक था। उनमें उमंग थी कि उनके बाप-भाई, Vह्मा-Vह्मी, पुरखों देश से इतने सारे हिंदी-प्रेमी और विद्घVVह्मन उनके देश आए हैं और उनकी भाषा को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। बहुत कुUळ हो सकता है इस सम्मिफिह्मत प्रयास से।

फह्मेकिन उनके दिफह्म में कई प्रश्निSह्मह्न भी हैं - कई िSह्मन्ताएँ भी हैं। उनकी पहफह्मी Sह्मता यह थी कि पिUळफह्मे एक सौ तीस वर्षो तक Vह्मो भाषा बSह्मी रही, क्या अगफह्मे तीस वर्षों में वह बSह्मी रहेगी ? पिUळफह्मी पीढ़ी तक माँ-दह्मह्म{ह्म बSSह्मों से सरनामी में ही बात करते थे क्योंकि उन्हें डSह्म उतनी अSUळी तरह से नहीं आती थी। फह्मेकिंन आVह्म की पीढ़ी के माँ बाप अपने बSSह्मों से डSह्म में बोफह्मते हैं क्योकि Yह्मान, विकास और रोVह्मगार की भाषा वही है। तो फिर तीस या पSह्मास वर्षों में Vह्मब अगफह्मी पीढ़ी आएगी तब सरनामी कहाँ होगी ?

दूसरी Sह्मता यह भी थी कि सरनामंी को यद्यपि हिंदी की एक बोफह्मी कहा Vह्मा सकता है, है तो वह हिंदी से अफह्मग ही। उनके बSSह्मे या वे स्वयं िVह्मसे अिvह्मक आसानी से समZह्म सकते हैं वह है सरनामी। तो क्या हिंदी |ह्ममी उनकी भावनाओं को समZह्मुगे ? सरनामी से उनका Vह्मह्मे भावनात्मक फह्मगाव है उसे सद्घह्मZह्मेंगे ? उसे अपने सरनामी स्वरुप में ही आगे बढ़ने देंगे या कि उसे बदफह्मकर - भफह्मे ही विकसित कर - हिंnड्ढ्र के रुप में ढ़ाफह्म देंगे? यदि आVह्म की सरनामी कफह्म हिंदी में ढ़फह्म गई तो सरनामंी का क्या होगा ? क्या सरनामी में ग्रंथ रSह्मना के फिह्मए इस हिंदी सम्मेफह्मन में कोई ठोस कार्यक्रम हाथ में फिह्मया Vह्माएगा?

तीसरी Sह्मता यह कि आVह्म सरनामी बोफह्मने वाफह्मे सभी फह्मह्मेग देवनागरी को नहीं पढ़ सकते हाँ, Sह्म पढ़ सकते हैं। तो क्या कोई समयबद्घ योVह्मना बन सकती ट्ठू कि एक +ह्म उनके प्रेरक ग्रंथों का - Vह्मूसे तुफह्मसी रामायण - Sह्म में अनुवाद हो और दूसरी ओर उन्हें अत्यंत सरफह्मता से देवनागरी फिह्मपी - सिखाने के फिह्मए कोई संगणक - vह्मारित कार्यक्रम हो।

उनकी सबसे बड़ी Sह्मता यह भी है कि आVह्म ही उन्हें अपने बSSह्मों को डSह्म की तरफ से अंग्रेVह्मी की ओर मोड़ने की आवश्यकता आन पड़ी है। तो फिर देवनागरी या हिंदी के सीखने में ऐसी कौनसी प्रेरणा है Vह्मह्मे इस तीसरे बोZह्म के फिह्मए उनके बSSह्मह्में को राVह्मी करे?

उनकी और भी समस्याएँ सुनीं - भाषा को फह्मेकर +{ह्मxह्म दह्मSSह्मह्मु Eॅ द्रह्मह्यम्ह्मरुद्यह्म Eॅह्म फह्मE- पांSह्मवीं, Uळठी, सातवीं ----- । उसके विषय में फिर कभी!



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